ऋषिकुल आश्रम के बारे में
ऋषिकुल आश्रम का उदय एक संस्था के रूप में नही बल्कि एक विचार अभियान के रूप में हुआ। यह आश्रम बिगत ४० वर्षो से लगातार समाज के बीच में एक अभियान के रूप में कार्य कर रहा है। संस्थाके माध्यम से समाज में ब्याप्त कुरीतियों को लेकर क्षेत्र में बडा जनमानस बना और लोग संस्था के संस्थापक पं0 उपेन्द्रनाथ जी से जुडते चले गये। वर्ष २००० मे ऋषिकुल आश्रम एक पंजीकृत संस्था के रूप में समाज में उभरा। इस आश्रम की गतिविधियां इतनी तेज थी कि क्षेत्रीय सामांतशाही लोगों को लगने लगा कि हमारा अस्तित्व खतरे में न पड जाये संस्था के सामने कई प्रकार की चुनौतिया लोगों ने खडी कर दी, लेकिन विशाल हदयी पं0 उपेन्द्रनाथ जी के कुशल निर्देशन में समस्त प्रकार की बाधाओं को पार करते हुये यह आश्रम समान विविधताओं के साथ, विभिन्न रंगो के साथ आज समाज में अपनी महक फेला रहा है।
और पढ़ेंउपेन्द्रनाथ जी के बारे में
समरसता के जीते जागते उदाहरण पं0 उपेन्द्रनाथ जी का जन्म ०१ मई १९३७ को उ0प्र0 के गुढा ग्राम के एक जमीदार परिवार में हुआ था, पं0 जी जन्म से ही सामांतशाही एवं छुआ – छूत के घुर विरोधी थेा परिवार से न बनने के कारण पं0 जी परिवार से दूर रहेा पंडित जी बाल काल से ही कुशाग्र बुद्धि एवं चहुमुखी प्रतिभा के धनी थे पंडित जी की पहली नौकरी उ0प्र0 तहसील में बाबू के रूप में लगी, लेकिन उन्हैं बाबू की नौकरी पसंद न होने के कारण छोड दी तदुपरांत पंडित जी म0 प्र0 आये और समाज सेवा में लग गयेा लेकिन समाज सेवाके साथ-साथ विद्यार्थियों को पढाने में रूचि होने के कारण पंडित जी ने शिक्षा विभाग में शिक्षक की नौकरी कर ली, और साथ ही तन मन धन से समाज सेवामें लग गये उनकी नजर हमेशा समाज के अंतिम छोर के ब्यक्ति पर रही...
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