समरसता के जीते जागते उदाहरण पं0 उपेन्द्रनाथ जी का जन्म ०१ मई १९३७ को उ0प्र0 के गुढा ग्राम के एक जमीदार परिवार में हुआ था, पं0 जी जन्म से ही सामांतशाही एवं छुआ – छूत के घुर विरोधी थेा परिवार से न बनने के कारण पं0 जी परिवार से दूर रहेा पंडित जी बाल काल से ही कुशाग्र बुद्धि एवं चहुमुखी प्रतिभा के धनी थे पंडित जी की पहली नौकरी उ0प्र0 तहसील में बाबू के रूप में लगी, लेकिन उन्हैं बाबू की नौकरी पसंद न होने के कारण छोड दी तदुपरांत पंडित जी म0 प्र0 आये और समाज सेवा में लग गयेा लेकिन समाज सेवाके साथ-साथ विद्यार्थियों को पढाने में रूचि होने के कारण पंडित जी ने शिक्षा विभाग में शिक्षक की नौकरी कर ली, और साथ ही तन मन धन से समाज सेवामें लग गये उनकी नजर हमेशा समाज के अंतिम छोर के ब्यक्ति पर रही और वे समाज की परवाह किये बिना बसोर समाज जो समाज एवं गॉव में अछूत माना जाता है जैसे परिवार में अपना आश्रय बनाया। साथ ही वहीं पर अपने भोजन पानी की ब्यवस्था करवाई। जितने भी शिष्य उनसे शिक्षा लेते थे वे सभी वहीं बैठकर खाना खाते थे। पंडित जी के साथ सभी शिष्य स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, गौसंवर्धन, संगीत की शिक्षा, प्राकृतिक योग व समाजिक उपवास चिकित्सा, आयुर्वेद व स्वरोजगार,नशामुक्ति हेतु छोटे-छोटे व पारंम्परिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना व गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना, व उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन करना साथ ही उन्हैं धन का सहयोगकरना तथा गरीबों की सहायता करना यह सिलसिला अनवरत कई बर्षो तक चलता रहा। धीरे-धीरे पंडित जी के साथ लोगों की बडी लंबी कतार खडी हो गई एवं समय की मांग की। बृहद कार्यक्रमों हेतु एक संस्था की आवश्यकता महसूस हुई और यहीं से जन्म होता है ‘’ ऋषिकुल आश्रम का ‘’ ……………………………।